अपना दून

दून शहर की पहचान तक मिटाने पर तुले ये बिगड़ैल रईसजादे !

पंकज भार्गव /देहरादून। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद बीते 17 सालों में राज्य में विकास के नाम पर जमकर हुए खिलवाड़ और दुष्परिणामों को देहरादून के पर्यावरण और बदसूरत हो चुकी शहर की तस्वीर को देखकर समझा जा सकता है। एक जमाने में शुकून और अपनी आवोहवा के लिए पहचाने जाने वाला यह दून शहर में अब हर ओर कंक्रीट का जंगल पनप चुका है। अफसोस की बात यह है कि शहर की यादों को बयां कर रहे कुछ हरियाली भरे इलाकों में पर्यटकों और खासकर पढ़ाई कर रहे बाहरी शहरों से आए युवा वर्ग की दखल उनके मनोरंजन के तरीकों ने स्थानीय ग्रामीणों का सुख चैन लूट लिया है।

दून के राजपुर क्षेत्र में स्थित शहनशांही आश्रम के ठीक पीछे बसा है टोल गांव। इस जगह से मसूरी जाने का पैदल मार्ग भी शुरू होता है। गांव के लोगों का कहना है कि मार्ग पर कुछ किमी आगे शिखर फॉल, मॉसी फॉल हैं। ये रमणीक स्थान शहर के विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाई करने आए लड़के-लड़कियों के लिए मौज मस्ती की जगह बन गए हैं।

स्थानीय ग्रामीण सुरेश भण्डारी, राजपाल, मनोज, आशीष, हयात सिंह आदि का कहना है कि गांव के रास्ते से गुजरने वाले वाहनों के शोरगुल से उनका दिन का चैन और रात की नींद हराम हो गई है। मसूरी जाने का पैदल मार्ग अब दोपहिया वाहनों पर आने वाले बिगड़ैल रईसजादों की अय्यासी की जगह बन गया है।

ग्रामीणों आरोप है कि क्षेत्र में आने वाला युवा वर्ग दून शहर की बचीखुची हरियाली को मिटाने पर तुला है। जमकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। वे अपने साथ लाई गईं शराब और पानी की बोतलें, प्लास्टिक का कचरा और प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली अन्य चीजों को यहीं बिखेर जाते हैं जिससे वातावरण प्रदूषित हो रहा है। उनका यह भी कहना है कि यदि यहां आने वाले युवाओं को पर्यावरण की दुहाई देकर सीख देने की कोशिश की जाती है तो वे लड़ने मरने पर उतारू हो जाते हैं।

ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि दून की हरियाली और यहां की आवोहवा को बचाने का ढोल पीटने वाली प्रदेश की सरकार और बुद्धिजीवी संगठनों तक टोल गांव वालों की गुहार क्यों नहीं पहुंच रही ? या फिर सुनकर भी इस आवाज को अनसुना कर केवल अपने आशियानों की हरियाली को सजाने और संवारने की जुगत की जा रही है।

Key Words : Uttarakhand, Dehradun, Rajpur Toal, Dun identity, Erase

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