अपना दूनव्यक्तित्व

व्यक्तित्व : स्वरोजगार के मायने यानि पैठाणी के राजेन्द्र रौथाण जी !

पंकज भार्गव

‘‘समय के साथ-साथ पहाड़ की जीवनशैली और खान-पान के तौर तरीकों में आये बदलाव को देखकर मन आहत हो जाता है। यहां के ढाबों और स्थानीय होटलों में सुबह-सुबह दाल-भात और रोटी सब्जी की जगह अब पराठें और चाऊमीन ने ले ली है, लेकिन थोड़ी खोज खबर की जाए तो पुराने संस्कार अभी बहुत पीछे भी नहीं छूटे हैं।’’ पैठाणी के राज होटल के रेस्तरां में सुख सुविधा के साथ खाने पीने का वह हर ब्रांडेड सामान मौजूद है जिसकी परिकल्पना केवल बड़े शहरों में ही की जा सकती है। मांग करने पर यहां पहाड़ी खाने और स्थानीय उत्पादों का लुफ्त भी लिया जा सकता है।

उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी की दूरी पर स्थित पैठाणी कस्बे की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां के राज होटल के मालिक राजेन्द्र रौथाण जी ने अपनी मेहनत और लगन से स्वरोजगार के सही मायनों को परिभाषित कर मिसाल कायम की है। खुद के दम पर स्वरोजगार शुरू कर पहचान बनाने वाले राजेन्द्र रौथाण 20-25 स्थानीय बेरोजगार लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करवा रहे हैं। पहाड़ की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में राज होटल आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस होने के साथ ही पहाड़ी और मैदानी के अलावा जायद दाम पर साउथ इंडियन खाने का जायका भी यहां मौजूद है।

पैठाणी की यात्रा से पूर्व मेरे एक मित्र ने मुझे यहां के सबसे पुराने राज होटल के बारे में बताया था और इस होटल में रात गुजारने की मेरी चाहत भी पूरी हो गई। सुबह की चाय के वक्त मेरी मुलाकात होटल के मालिक राजेन्द्र रौथाण जी से हुई। बेहद गंभीर व्यक्तित्व का आभास कराने वाले रौथाण जी बेहद मिलनसार और पहाड़ की संस्कृति से जुड़े नजर आए। बातचीत के दौरान उन्होंने स्वरोजगार को शुरू करने के बारे जो बातें साझा कीं वह वाकई काबिले तारीफ है। उन्होंने बताया कि युवा अवस्था में रोजगार की खातिर वह मुम्बई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने चले गये। एक बार अपने गांव आते समय रेल यात्रा के दौरान एक बुद्धिजीवी से हुई मुलाकात ने उनकी सोच और जीवन को नई राह दिखाने का काम किया। स्वरोजगार की प्रेरणा उन्हें उन्हीं महानुभाव से मिली और फिर उन्होंने अपनी माटी और प्रदेश में रहकर ही रोजगार का अवसर तलाशने का मन बना लिया। रौथाण जी बताते हैं कि शुरूआती दौर बेहद संघर्षपूर्ण रहा लेकिन काम करने की इच्छा शक्ति किसी भी चुनौती से सशक्त होती है। स्वरोजगार की दिशा में हमारी सरकार के ओर से किये जा रहे प्रयासों को सही कदम बताते हुए उनका मानना है कि दूसरे की नौकरी करने से कहीं बेहतर है खुद का स्वरोजगार।

समय के साथ-साथ पहाड़ की जीवनशैली और खान-पान के तौर तरीकों में आये बदलाव को देखकर मन आहत हो जाता है। यहां के ढाबों और स्थानीय होटलों में सुबह-सुबह दाल-भात और रोटी सब्जी की जगह अब पराठें और चाऊमीन ने ले ली है। लेकिन थोड़ी खोज खबर की जाए तो पुराने संस्कार अभी बहुत पीछे भी नहीं छूटे हैं। राज होटल के रेस्तरां में खाने पीने का वह हर ब्रांडेड सामान मौजूद है जो जिसकी परिकल्पना केवल बड़े शहरों में ही की जा सकती है। साथ ही मांग करने पर पहाड़ी खाने का लुफ्त भी लिया जा सकता है। राज होटल के अपने बेकरी प्रोडेक्ट, खुद की आटा चक्की का पिसा आटा, खेत की ताजी आर्गेनिक सब्जियां इस बात को सच करती हैं कि रौथाण जी ने आधुनिकता को सम्मान देने के साथ ही अपनी परंपरा को भी जीवित रखने का प्रयास किया हुआ है। पैठाणी से विदा लेते समय मन में यही विचार आ रहा था कि आज हमारे प्रदेश में रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में जाने वाले युवाओं के लिए रौथाण जी जैस व्यक्तित्व की जीवन यात्रा का पहुंचना जरूरी है। ऐसे कई मागदर्शी और भी होंगे लेकिन उनकी सफलता की कहानी युवाओं तक पहुंचना महत्वपूर्ण है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button