संस्कृति एवं संभ्यता

(यात्रा संस्मरण) … माई की कुटिया !

पंकज भार्गव

हाल ही में पौड़ी जिले के थैलीसैंण विकास खण्ड की यात्रा के दौरान बड़े भाई उदय राम ममगाईं जी के पैत्रिक गांव जखोला जाने का सौभाग्य मिला। हम थलीसैंण बाजार से करीब 3 किमी पैदल चलने के बाद प्रकृति के अपार सौंदर्य को समेटे जखोला गांव पहुंचे। पहाड़ की उस शाम की अनुभूति को बयां करने के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे। ममगाईं जी की स्कूली शिक्षा इसी गांव की प्राइमरी पाठशाला में हुई। चीड़ के जंगल के बीच से गुजरने वाले रास्ते में उन्होंने अपने बचपन की दर्जनों यादें साझा कीं।

ममगाईं जी को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह वापस पुराने दौर में पहुंच गए। उन्होंने बताया कि पहले गांव तक पहुंचने के लिए पहले केवल पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता था, परंतु अब कच्चा मोटर मार्ग तैयार है और उम्मीद है जल्द ही इस मार्ग का डामरीकरण भी हो जाएगा। बचपन से गांव तक मोटर पहुंचने के सपने को पूरा होता देखकर करीब दो साल बाद अपने गांव पहुंचे ममगाईं जी खासे उत्साहित थे।

रास्ते में इसी दौरान उन्होंने माई की कुटिया के दर्शन कराए। माई तो अब रही नहीं लेकिन मंदिर के साथ सटी उनकी कुटिया आज भी उनकी यादों को संजोये हुए है।अपनी संस्कृति और धार्मिक आस्था को जीवित रखने की मंशा रखने वाले ग्रामीण आज भी इस मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। सुबह सवेरे और शाम को मंदिर पर लगे माइक से आने वाली आवाज इस बात की गवाह है कि उन्होंने माई की परंपरा को जीवित रखा हुआ है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button