एक्सपोजर विजिट : दून की ‘‘बुक बैंक’’ का सफरनामा
पंकज भार्गव / देहरादून
कट्स इंटरनेशनल के ग्रीन एक्शन वीक 2021 के सामूहिक भागीदारी कार्यक्रम के तहत अभिव्यक्ति सोसाइटी के सदस्यों ने देहरादून में बच्चों को निशुल्क पुस्तकें उपलब्ध करवा रहे बुक बैंक का एक्सपोजर विजिट किया। बुक बैंक के संस्थापक आरिफ खान ने टीम के सदस्यों से बुक बैंक के लक्ष्यों और सामाजिक सरोकारों से जुड़े अपने सफर के अनुभव साझा किये।
दून के नेहरू काॅलोनी में गरीब बच्चों को निशुल्क स्कूली किताबें उपलब्ध करवा रही बुक बैंक के संस्थापक एवं अभिभावकों और छात्रों के हक-हकूक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे नेशनल एसोसिएशन फाॅर पेरेन्ट्स एंड स्डूटेंड राइट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरिफ खान ने एक्सपोजर विजिट के लिए पहुंची टीम के सदस्यों को बुक बैंक के लक्ष्यों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि स्कूली फीस के बोझ के अलावा काॅपी किताबों और यूनीफार्म के चलते शिक्षा से वंचित छात्रों और अभिभावकों की पीड़ा को कम करने कीे भावना ने उन्हें इस दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित किया। आठ साल पहले वर्ष 2014 में अपने बच्चों की पुरानी स्कूली किताबों को गरीब बच्चों को दान स्वरूप देकर उन्होंने इस नेक कार्य की शुरूआत की। इस काम में उनके साथियों ने सहयोगी बनकर उनकी हौसला अफजाई की जिसके चलते आज यह सफर अविरल जारी है। दून में वर्तमान में बुक बैंक की 8 ब्रांच कार्यरत हैं। जल्द ही इन ब्रांचों की संख्या 11 हो जाएगी।
लाॅकडाउन में घर-घर पहुंचाईं स्कूली किताबें:
बुक बैंक के आरिफ खान बताते हैं कि कोरोना महामारी के चलते लाॅक डाउन के समय स्कूलों ने आॅन लाइन पढ़ाई की शुरूआत की जिसके चलते जरूरतमंद बच्चों को उन्होंन अपने संसाधनों से देहरादून के ऋषिकेश, डोईवाला, विकासनगर आदि स्थानों तक स्कूली पुस्तकें पहुंचा कर बुक बैंक के लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास किया।
‘‘अपनी पाठशाला’’ में गरीब बच्चों को कर रहे शिक्षित:
आर्थिक कारणों से स्कूली शिक्षा हासिल न कर पाने बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए समाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित आरिफ खान ने 2019 में फुटपाथ पर रहने वाले गरीब बच्चों को शिक्षित करने को अपनी पाठशाला के नाम से मुहिम भी चलाई हुई है, जिसके लिए शिक्षकों को दिए जाने वाले मानदेय की व्यवस्था भी वह अपने स्तर से करते हैं।
कभी नहीं मांगी फडिंग :
आरिफ खान का कहना है कि बुक बैंक की स्थापना से लेकर आज तक उन्होंने कभी भी किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्था से आर्थिक मदद नहीं मांगी है। वह बताते हैं कि कुछ समाज सेवी और बुद्विजीवियों ने पाठशाला के मन्तव्य को समझा और उन्होंने काॅपी, किताबें और स्टेशनरी के स्वरूप में मदद के हाथ बढ़ाये जो काबिलेतारीफ है।
परिवार का सहयोग बना सफरनामे का आधार :
समाज को आईना दिखाने का कामकर रहे आरिफ खान का कहना है कि कई बार आर्थिकी का संकट आने के बावजूद उनके परिवार ने पूरी मजबूती के साथ उनके कार्यों में हौसलाअफजाई की। वह कहते हैं कि उनके कार्यों में परिवार के सदस्यों से मिलने वाला सहयोग और ताकत ही उनके इस सफरनामे का आधार है।