दून की नदियों को प्रदूषण मुक्त करना बना चुनौती
देहरादून/डीबीएल ब्यूरो। दून की नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट रिस्पना नदी के हालात प्रशासन की लचर कार्यप्रणाली के चलते बदहाल होते जा रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रशासन नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के आदेशों को भी पलीता लगाने का काम कर रहा है। नदी किनारे बसी अवैध बस्तियां शासन प्रशासन की मुहिम को मुंह चिढ़ाती नजर आ रही हैं।
प्रशासन की लचर कार्यप्रणाली के चलते प्रदेश की राजधानी देहरादून की नदियों को प्रदुषण मुक्त बनाना चुनौती बना हुआ है। नदी किनारे बसी अवैध बस्तियों के कारण नदियों में गंदगी का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। वहीं रिस्पना व बिंदाल पुल में खुले में शौच के कारण भाजपा सरकार के स्वच्छ भारत मिशन को भी गहरा झटका लग रहा है। नैनीताल हाईकोर्ट ने सूबे की नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए प्रशासन को आदेश दिए हैं मगर प्रशासन हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाने से भी बाज नहीं आ रहा है।
हाईकोर्ट के आदेश और प्रदूषण के बढ़ते ग्राफ के बावजूद रिस्पना और बिंदाल की सूरत बदलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इन नदियों के किनारे बसी लगभग दो लाख की आबादी का पुनर्वास प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो रिस्पना और बिंदाल नदी मानक से करीब 76 गुना ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है। हाल ही में नैनीताल हाईकोर्ट ने एक याचिका पर आदेश देते हुए इन नदियों पर बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर सरकार और प्रदूषण कंट्रोल करने वाली एजेंसी से सात दिन में जवाब भी मांगा था।
जिला प्रशासन का कहना है कि रिस्पना और बिंदाल में कब्जाधारियों को पहले ही चिन्हित किया जा चुका है। उनके पुनर्वास को लेकर भी विचार किया जा चुका है। जिसके बाद अब इन अतिक्रमणकारियों को दूसरी जगह बसाकर कार्ययोजना को आगे बढ़ाया जाएगा। प्रशासन अपनी गतिविधियों को कब तक अंजाम दे पाएगा। यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है।
वर्तमान हालात देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि दो लाख लोगों का पुनर्वास प्रशासन कहीं खुद प्रशासन के गले की हड्डी न बन जाए। रिस्पना और बिंदाल में करीब 129 बस्तियां हैं, जिन्हें पुनर्वासित किए जाने की बात कही जा रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रिस्पना को पुनर्जीवित करने के कई दावे किए और कई कार्यक्रम भी चलाए, लेकिन हालात सुधरते नजर नहीं आ रहे हैं।