व्यक्तित्व: लाल झंडा देता है कामरेड शंभू प्रसाद ममगाईं की वैचारिक अडिगता का संदेश

पंकज भार्गव
उत्तराखंड में चुनावी बिगुल बजते ही हर बार की तरह इस बार भी दून के कंडोली स्थित एक मकान के ऊपर लहराता लाल झंडा वैचारिक अडिगता का संदेश देता नजर आने लगा है। यह मकान निवास है कामरेड शंभु प्रसाद ममगाईं जी का। बदलते समय के साथ राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं में बदलाव का आना कोई नई बात नहीं है। चुनावी माहौल बनते ही स्वयं का हित साधने वाले एक नहीं कई सारे दल बदलू नेता और कार्यकर्ता गुलाटियां मारना शुरू कर देते हैं लेकिन युवा अवस्था से ही पूंजीवादी व्यवस्था और श्रमिकों के हितों के लिए आवाज बुलंद करने वाले कामरेड शंभू प्रसाद ममगाईं जी आज भी मार्क्सवादी विचारधारा के पथ पर अडिग हैं।
पेशे से वकील शंभू प्रसाद जी अपनी कलम के भी धनी हैं। हाल ही में उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘अमीर-गरीब भाग्य नहीं बनाता व्यवस्था बनाती है’’के माध्यम से देश के वर्तमान राजनैतिक हालातों को अमीर और गरीब के बीच की खाई को और गहरा करने के लिए जिम्मेदार बताते हुए एक नई राजनैतिक व्यवस्था की जरूरत पर जोर दिया है।
शंभू प्रसाद जी का कहना है कि अपने को जिंदा रखने के लिए श्रमिक अपनी श्रमशक्ति पूंजीपति को बेचने के लिए बाध्य होता है। यह एक नई तरह की दासता है जो ऊपर से दिखलाई तो नहीं देती लेकिन श्रमशक्ति बेचने के लिए मजबूर व्यक्ति किसी व्यक्ति विशेष पूंजीपति का गुलाम न होकर व्यवस्था का गुलाम होता है।
कामरेड शंभू प्रसाद ममगाईं जी से बातचीत के बाद सही मायनों में यही कहा जा सकता है कि शदियों से श्रमिक और दबे कुचले वर्ग का शोषण आज भी एक नये स्वरूप में बदस्तूर जारी है जिसके लिए हमारी राजनैतिक व्यवस्था और स्वयं का हित साधने की नीयत को जिम्मेदार कहना गलत न होगा।