…अब वन पंचायतों के माध्यम से होगा कीड़ा जड़ी का दोहन
देहरादून। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की मिल्कियत कीड़ा जड़ी (यारसा गुंबा) के अनियंत्रित दोहन पर अब अंकुश लग सकेगा। इसके नियंत्रित दोहन और विपणन के लिए नीति को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। रोटेशन के आधार पर कीड़ाजड़ी का टिपान होगा, ताकि बुग्यालों को नुकसान न पहुंचे। नीति के मुताबिक वन पंचायतों के माध्यम से कीड़ा जड़ी का दोहन होगा।
प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है। सरकारी अनुमान पर ही गौर करें तो यहां से प्रति वर्ष तीन से पाच कुंतल तक कीड़ा जड़ी निकल रही है। गैर सरकारी आकड़े इसे 10 कुंतल तक बताते हैं। गैर तरीके से किए जा रहे इस कारोबार से हिमालय के बुग्यालों को नुकसान पहुंच रहा था जिसके चलते 2013 में वन विभाग ने गाइडलाइन जारी की थी कि कीड़ा जड़ी का विदोहन केवल वन पंचायतें करेंगी। गाइड लाइन में तय किया गया था कि निकालने के बाद कीड़ा जड़ी वन विकास निगम को दी जाएगी और वह एक निश्चित राशि देने के बाद इसकी नीलामी करेगा, मगर यह व्यवस्था प्रभावी नहीं हो पाई।
प्रदेश में बड़े पैमाने पर कीड़ा जड़ी का विदोहन कर बिचैलियों को औने-पौने दामों पर बेच रहे हैं। यही नहीं, कीड़ा जड़ी के लिए बुग्यालों में बड़े पैमाने पर मानवीय दखल से इनकी सेहत पर भी असर पड़ रहा था। इस सबको देखते हुए कीड़ा जड़ी के दोहन व विपणन को नीति बनाने पर जोर दिया जा रहा था। लंबी कवायद के बाद नीति तैयार हुई, जिसे कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई।
व्यक्तिगत रूप से कीड़ाजड़ी दोहन के लिए वन विभाग में पंजीकरण कराना होगा, जिसका शुल्क 10 हजार रुपये निर्धारित किया गया है। प्रतिवर्ष इसके नवीनीकरण को हजार रुपये की राशि अदा करनी होगी। कीड़ा जड़ी पर हजार रुपये के गुणात्मक स्वरूप में रॉयल्टी का निर्धारण भी किया गया है।