डांडा देवराणा मेले में झलकती है आस्था और संस्कृति
उत्तराखंड सरकार प्रदेश को पर्यटन प्रदेश बनाने की बात जरूर करती है, लेकिन इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि राज्य गठन से लेकर आज तक यह मंशा धरातली रूप नहीं ले पाई है। पूरे उत्तराखंड में सैकड़ों ऐसे धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल हैं जहां आज तक सरकार की नजर नहीं गई है, लेकिन स्थानीय लोगों ने आज भी अपनी धरोहरों को संजो के रखा हुआ है। यमुना घाटी क्षेत्र में आज भी पुरातन परंपरा के ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। बरसात के महीने में इस क्षेत्र में डांडा देवराणा के मेले में स्थानीय लोगों की आस्था के दर्शन होते है। इस परंपरागत और ऐतिहासिक मेले पर नौगांव से हमारे संवाददाता दिलीप कुमार की प्रस्तुति आपके लिए -ः
यमुना घाटी में हर साल लगने वाला डांडा देवराणा मेला पूरी यमुनाघाटी के लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। यह मेला जुलाई माह में आयोजित किया जाता है। मेले के दिन रुद्रेश्वर महादेव की डोली किम्मी से देवराना पहुंचती है। महादेव के दर्शन के लिए यमुनाघाटी के गांवों से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि हजारों साल पहले रुद्रेश्वर महादेव रुद्र के स्वरूप में इस स्थान पर जन्मे थे।
क्षेत्र के शांति प्रसाद, रामेश्वर थपलियाल, सीताराम बहुगुणा, रामप्रसाद थपलियाल, भगवती प्रसाद थपलियाल आदि का कहना है कि धार्मिक हजारों लोगों की आस्था का प्रतीक देवराना स्थल पर हर साल लगने वाले मेले का आयोजन स्थानीय लोग मिलकर करते हैं। जबकि सरकार की ओर से प्रदेश के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों को पहचान दिलाने की बात आज तक कोरी साबित ही हुई है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि सरकार को इस सांस्कृतिक मेले और धरोहर स्थल की पहचान के लिए सुध लेनी चाहिए। मेले के आयोजन के दौरान स्थानीय परिधान, खानपान और लोकनृत्य के बीच यमुना घाटी की अनूठी संस्कृति के दर्शन देखते ही बनते हैं।
Key Words : Uttarakhand, Yamuna Ghathi, Danda Devrana Mela, Faith and Culture