मैती आंदोलन : शादी के समय रोपे गए पौधे को संरक्षित करता है भावनात्मक प्रेम
देहरादून। उत्तराखंड के चमोली जिले के ग्वालदम कस्बे से शुरू हुए मैती आंदोलन को अब कई राज्यों की सरकारें भी अपने पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम से जोड़ कर आगे बढ़ रही हैं। उनका कहना है कि इस आंदोलन को व्यापक स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है और इसे और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है।
मैती आंदोलन के संस्थापक कल्याण सिंह रावत मैती ने कहा है कि कहा कि इस आंदोलन की शुरूआत राजकीय इंटर कालज ग्वालदम से शुरू की गई और आज यह आंदोलन छह से अधिक देशों तथा 18 से अधिक राज्यों में जन सहयोग से चल रहा है। उनका कहना है कि इस आंदोलन के तहत शादी विवाह पर दूल्हा और दुल्हन एक यादगार पौधारोपण करते है और इस पौधे को बचाने की जिम्मेदारी दुल्हन की सहेलियों की होती है लेकिन सबसे ज्यादा मां की भावनात्मक प्रेम इस पेड को बचाने में सहायक होती है।
रावत का कहना है कि आज तक लगभग पांच लाख पेड़ शादी विवाह में लग चुके है। उनका कहना है कि उत्तराखंड में मैती की ओर से ग्राम गंगा अभियान चलाया जा रहा है जिसमें हर प्रवासी अपने गांव के लिए प्रतिदिन एक रूपया बचा रहा है और पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के दिन ये प्रवासरी लोग अपने जमा किये पैसो को अपने पैतृक गांव को भेजेंगे और इन पैसो से उनका एक पेड़ गांव में लगाया जायेगा बाकि पैसों से गांवी की शिक्षा, स्वास्थ्य तथा स्वच्छता की व्यवस्था की जायेगी, इससे गांवों का पलायन तो रूकेगा ही साथ ही प्रवासी और ग्रामीणों के बीच में दूरियां कम होगी।
कल्याण सिंह रावत का कहना है कि पेड़ लगेंगें तो पानी बचेगा और गंगा पोषित होगी, वर्तमान में मैती 70 विधायकों के नाम पर दो-दो लडकियों से पेड़ लगाकर उन्हें विधायकों से जोड रहे हैं विधायक इन बेटियों की सहायता करेंगें। उनका कहना है कि बेटी बचाओ बेटी पढाओ के लिए यह कार्यक्रम काफी कारगर साबित हो रहा है अब तक साठ विधानसभाओं में पेड़ लग चुके है और शेष विधानसभाओं में शीघ्र ही पेड़ लगाये जायेंगे।