व्यक्तित्व

(व्यक्तित्व) : ऋषिपाल के जीवन में दोबारा लौट आई खुशहाली

पंकज भार्गव

देहरादून जिले के विकासनगर विकासखण्ड में जस्सोवाल गांव निवासी ऋषिपाल परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करने से वह आर्थो की बीमारी के चपेट में आकर दिव्यांग हो गए। बीमारी के इलाज में काफी पैसा और समय लगा लेकिन आराम नहीं मिला। उनका कहना है कि जीने के आत्मविश्वास ने उन्हें एक नई शुरूआत करने की ताकत दी और उनके जीवन में दोबारा खुशहाली लौट आई है।

ऋषिपाल बताते हैं कि टेलिरिंग का काम उन्होंने काफी कम उम्र में सीख लिया था। यह काम ही उनके परिवार की आय का साधन बन गया था। उन्होंने बताया कि घर से दूर लुधियाना, अम्बाला शहरों में रहकर वह टेलरिंग का काम किया करते थे। परिवार में बच्चों की जरूरतें बढ़ने लगीं तो ऋषिपाल ने और अधिक काम और मेहनत करना शुरू कर दिया जिससे वह आर्थो बीमारी के शिकार हो गए। ऋषिपाल कहते हैं कि बीमारी के इलाज में लाखों खर्च करने के बावजूद वह सामान्य नहीं हो सके और दिव्यांगता की श्रेणी में आ गए।

ऋषिपाल कहते हैं कि संयुक्त परिवार होने के कारण भाइयों ने उनके इलाज में पूरी मदद की लेकिन उनकी जिंदगी में आए ठहराव ने उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान कर दिया। घर खर्च और भविष्य की चिंता उन्हें हर समय सताती रहती थी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में उनके गांव में दिव्यांग समावेशी आजीविका परियोजना की शुरूआत हुई। सर्वे के बाद उन्हें लाभार्थी के रूप में उन्हें परियोजना के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल किया गया।

आजीविका परियोजना में शामिल होने के बाद ऋषिपाल का खोया हुआ आत्मविश्वास जाग उठा। वह कहते हैं दिव्यांगजनों के अधिकारों के अलावा उन्हें अन्य दिव्यांग साथियों के साथ जैविक खाद बनाने, मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया। ऋषिपाल कहते हैं कि अपनी खेतीबाड़ी जमीन पर उन्होंने जैविक सब्जी का उत्पादन और बिक्री शुरू की जिससे उनकी आमदनी दोबारा से शुरू हो गई। दिव्यांग स्वयं सहायता समूह से जुड़कर उन्होंने हर महीने बचत करनी भी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि समूह की मासिक बैठकों में साथियों से मुलाकात उन्हें अच्छी लगती है और इस दौरान नई-नई जानकारियों का भी आदान-प्रदान होता है।

ऋषिपाल अब गांव के दूसरे दिव्यांगजनों को भी आजीविका चलाने के लिए जागरूक कर रहे हैं। दिव्यांग साथियों के प्रमाणपत्र, बस पास आदि बनवाने में भी जागरूक ऋषिपाल पूरी मदक करते हैं। खुद की खेती से जैविक सब्जियों की दुकान चला रहे ऋषिपाल का कहना है कि अब उन्हें परिवार व समाज में पहले से अधिक सम्मान भी मिलने लगा है।

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