डीबीएल ब्यूरो :-
लॉस एंजिल्स ओलिंपिक 1984 में महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रहीं पीटी उषा के आगमन के बाद एथलीट के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं के स्वर्णिम भविष्य की संभावनायें देखी जाने लगी थीं, लेकिन यह सोच मिथक मात्र बनकर रह गई। विश्वस्तरीय एथलीट प्रतियोगिताओं में शामिल होने के लिए सुविधाओं का अभाव इस राह में सबसे बड़ी बाधा बनता रहा है। आज तक हम ओलिंपिक में अंतिम दौर में पहुंचकर ही खुशी मनाते रहे हैं। हाल ही में 18 वर्षीय असमिया एथलीट हिमा दास ने अपनी शानदार उपलब्धि से भारतीय ऐथलेटिक्स में एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में आयोजित आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता है।
हिमा विश्व स्तर पर ट्रैक स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतनेवाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं। इससे पहले भारत के किसी भी महिला या पुरुष खिलाड़ी ने जूनियर या सीनियर किसी भी स्तर पर विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड नहीं जीता है। हिमा की उपलब्धि उन तमाम एथलीटों पर भारी है जिनके नाम दशकों से दोहराकर हम थोड़ा.बहुत संतोष करते रहे हैं। 1980 में मॉस्को में एशियाई खेलों में कुछ एथलीटिक स्वर्ण जरूर हमारे हाथ लगे। 1951 में प्रथम एशियाई खेलों में लेवी पिंटो ने 100 व 200 मीटर, दोनों दौड़ें जीतीं। मनीला में दूसरे एशियाई खेलों में सरवन सिंह ने 110 मीटर बाधा दौड़ जीती। 1958 में टोक्यो में मिल्खा सिंह ने अपने पदार्पण के साथ ही 200 व 400 मीटर में विजय प्राप्त की। 1970 में बैंकाक में कमलजीत संधू 400 मीटर स्पर्द्धा में पहला स्थान प्राप्त कर एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। थाईलैंड में 1978 में गीता जुत्शी ने 800 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
ऐथलेटिक्स को लेकर देश में कभी ढंग का माहौल नहीं बन पाया। प्रतिभावान खिलाड़ियों को औसत दर्जे की ट्रेनिंग के साथ शुरुआत करनी पड़ी। खेल संघ को मिलनेवाली राशि का सही इस्तेमाल भी नहीं होता था। इन गलतियों से हमें जल्दी उबरना होगा और इसकी पहली आजमाइश 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में हिमा दास के साथ ही करनी होगी। यदि हमारा खेल मंत्रालय हिमा दास के अनुभवों को समझे और उन पर अमल करे तो यह कहा जा सकता है कि एथलीट के क्षेत्र में हमारे खिलाड़ी किसी से कम नहीं हैं।