संस्कृति एवं संभ्यता

….कभी अवसर मिले तो जरूर जाइये ! चमोली जिले के रमणीक गांव सैंती गूठ

उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में विकासखण्ड घाट से 3 किमी दूरी पर स्थित है सौम्य एवं सुंदर गांव सैंती गूठ। प्रकृति की गोद में बसे इस गांव को पर्यटन एवं आस्था के नजरिए से जोड़ा जाए तो पर्यटन प्रदेश के सपने को साकार करने में यह मील का पत्थर साबित हो सकता है। सैंती गांव के बारे में आस्था से जुड़े रमणीक स्थलों की जानकारी उजागर करने में देवभूमि लाइव न्यूज पोर्टल के संवाददाता एवं सैंती के पूर्व प्रधान घनश्याम मैंदोली, उप प्रधान भवानी दत्त मैंदोली के साथ लेखन सहयोग में समाजसेवी मथुरा प्रसाद त्रिपाठी एवं पुरुषोत्तम मैंदोली का विशेष आभार।

चमोली जिले में विकासखण्ड घाट स्थित सैंती गांव स्थित भगवान बद्री विशाल के स्वरूप में श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर आस्था का प्रतीक है। यह मंदिर लक्ष्मी नारायण सिद्धपीठ के रूप में भी विख्यात है। परम्परा के अनुसार पीढ़ियों से गांव के मैंदोली ब्राह्मणों द्वारा मंदिर में सुबह-शाम पूजा अर्चना का कार्य किया जाता है। मंदिर में स्थानीय लोग अपने धार्मिक संस्कारों को सम्पन्न करते हैं। जनमाष्टमी, रामनवमी, दशहरा आदि पर्वों पर मंदिर प्रांगण में स्थानीय मेलों का आयोजन पूरे हर्षोल्लास के साथ किया जाता है। पूर्व में यह मंदिर बदरी-केदार समिति के अधीन था यात्राकाल के अतरिक्त छह महीनों तक मंदिर समिति के द्वारा इस मंदिर के लिए पूजा-अर्चना की सामग्री भेजी जाती थी। किंचित कारणों से यह व्यवस्था अब समाप्ति की ओर है। अब मंदिर की सभी व्यवस्थाओं का निर्वहन गांव के गूठ ब्राह्मणों और गांववासियां द्वारा ही किया जाता है।

लक्ष्मी नारायण मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर पाषाण शिलाओं से निर्मित एक जलकुण्ड है, जिसे लक्ष्मी कुण्ड के नाम से भी जाना जाता है। इस कुण्ड में किसी भी व्यक्ति को प्रवेश की अनुमति नहीं है। इस कुण्ड के जल का प्रयोग केवल दही के मथने के इस्तेमाल में किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इस कुण्ड का निर्माण लक्ष्मी जी के स्नान के लिए शंकराचार्य से करवाया था।

लक्ष्मी कुण्ड से कुछ ही दूरी पर 10 से 12 फीट लंबी पाषाण शिलाओं का समूह है। इन शिलाओं से बहने वाली जलधारा को बह्मधारा कहा जाता है। इस जलधारा में स्नान करने के बाद ही लक्ष्मीनारायण मंदिर के पुजारी पूजा-अर्चना का कार्य करते हैं। स्नान के लिए पुजारी अपने निवास से नंगे पैर जलधारा तक पहुंचते हैं।

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