पर्यटन

यात्रा वृतान्त: अतीत की यादों का चलचित्र है देश का सीमांत गांव अटारी

पंकज भार्गव :

देहरादून से अटारी बाॅर्डर तक राॅयल इन्फील्ड का 882 किमी का सफर एक यादगारी सफर में शामिल हो गया। मेरा मानना है कि किसी भी यात्रा वृतान्त को साझा करने से अनुभवों का आदान-प्रदान तो होता ही है साथ ही अगले पड़ाव की यात्रा के लिए एक नई ऊर्जा का संचार भी बना रहता है। अटारी और वाघा बाॅर्डर को लेकर मेरे दिमाग में रही भ्रांति भी इस यात्रा के बाद दूर हो गई।

भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर जिले में देश का सीमांत आखिरी गांव है अटारी। वहीं दूसरी ओर वाघा पाकिस्तान का आखिरी गांव है। 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को जब देश का बंटवारा हुआ और भारत से पाकिस्तान का उदय हुआ। ग्रांट ट्रंक रोड पर निशानदेही कर दी गई और दोनों देशों के झंडों को बड़े खंभे पर लगा दिया गया। इस दौरान किसी को भी दोनों तरफ आने-जाने वालों से पूछताछ की जाती थी।

1958 में बनाई गई पुलिस चौकी :

1958 में अटारी सीमा पर एक पुलिस चौकी स्थापित की गई जो आज भी मौजूद है। 1965 में बीएसएफ को सीमा रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई और रिट्रीट का सिलसिला शुरू हुआ।

आतंकवाद फैलने पर लगाई फेंसिंग :

1998 में पंजाब में आतंकवाद के फैलने के बाद पूरी बॉर्डर पर फेंसिंग लगा दी गई। 1990 के दशक में गेट को और बड़ा किया गया और 2001 में यहां पर दर्शक गैलरी बनाई गई जहां पर 15 से 20 हजार लोग रिट्रीट देखते हैं।

हिंदुस्तान का आखिरी रेलवे स्टेशन अटारी :

अटारी पंजाब से सटे पाकिस्तान बार्डर का आखिरी रेलवे स्टेशन है। ‘समझौता एक्सप्रेस’ 22 जुलाई, 1976 को ‘शिमला समझौते’ के तहत अटारी-लाहौर के बीच चलना शुरू हुई थी।  पाकिस्तान के लाहौर तक सप्ताह के दो दिन सोमवार और बृहस्पतिवार को समझौता एक्सप्रेस ट्रेन चला करती थी। मगर जम्मू कश्मीर के आर्टिकल 370 को खत्म करने के फैसले के बाद अगस्त 2019 के बाद से इस ट्रेन को बंद कर दिया गया जिसके चलते अब यह स्टेशन अतीत की यादों का गवाह मात्र बनकर रह गया है।

मई 2015 में, पंजाब सरकार ने स्टेशन का नाम बदलकर श्याम सिंह अटारीवाला के नाम पर अटारी शाम सिंह रेलवे स्टेशन कर दिया, जो सिख साम्राज्य में जनरल थे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button