महिला दिवस पर विशेष: गीतांजलि ढौंढियाल की ताकत बना संघर्ष का सफर

पंकज भार्गव
अक्सर महिला सशक्तिकरण और सफल महिलाओं का जिक्र छिड़ते ही किसी मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ हैं या सेलिब्रेटी तस्वीर पेश की जाने लगती है। आर्थिकी के लिहाज से मध्यम या निचले तबके में घरेलू कामकाज और बाहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहीं महिलाओं की पहचान इन चकाचैंध भरी महिलाओं की उपलब्धियों के नीचे दबकर रह जाती हैं।
मध्यम पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़ी देहरादून की गीतांजलि ढौंढियाल उन्हीं महिलाओं में से हैं जिन्होंने अपनी लगन, मेहनत और काबलियत के दम पर अपनी अंतरात्मा की आवाज को कभी भी अनसुना नहीं किया। वह आज पारिवारिक दायित्वों को निभाने के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों के प्रति लोगों को कचरा प्रबंधन, आयसर्जन, आपदा प्रबंधन, महिला सशक्तिकरण जैसे अनेक विषयों पर बतौर प्रशिक्षक के रूप में जागरूक करने का कार्य कर रही हैं। वह कहती हैं कि संघर्ष का सफर आसान तो नहीं होता लेकिन बहुत कुछ सिखलाने वाला होता है। इस दौरान मिलने वाली सीख व अनुभव व्यक्तित्व विकास और आत्मविश्वास को निखारते हैं।
गीतांजलि बताती हैं कि छोटी उम्र में ही पिता का साया न रहने के बाद उन्होंने तमाम बंदिशों और समाज के तानों को दरकिनार कर अपनी पढ़ाई के साथ घर की आर्थिकी में भी सहयोग करना शुरू किया। सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने की अपनी ललक के बूते गीतांजलि ने एक प्रतिष्ठित समाजसेवी संस्था में बतौर मुख्य प्रशिक्षिका के तौर पर अपनी पहचान बनाई। वर्तमान में स्किल डवलेपमेंट के माध्यम से स्वरोजगार और आर्थिकी सुधारने के लिए केंद्र सरकार के जन शिक्षण संस्थान चमोली में डायरेक्टर, अभिव्यक्ति सोसाइटी की वाइस चेयरपर्सन जैसे पदों पर रहने के बावजूद गीतांजलि जमीनी स्तर पर गांव-गांव जाकर लोगों को सरकारी योजनाओं और उनके अधिकारों के बारे में जागरूक कर रही हैं। रूढ़िवादिता और पुरुष प्रधान वाली मानसिकता से ग्रस्त महिलाओं को उम्मीद की राह दिखा रही हैं।
गीतांजलि का कहना है कि उनके पति का सहयोग और सकारात्मक विचारधारा घर और बाहर दोनों जगह उनकी पहचान कायम रखने में उनकी शक्ति का स्वरूप है।