‘‘डिसेबिलिटी एक्ट 2016’’ मंशा एवं शंकायें
पंकज भार्गव …
27 दिसंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात के 15 वें एपिसोड में शारीरिक अक्षमता वाले व्यक्तियों की बात करते हुए ‘विक्लांग’ की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल करने की अपील देशवासियों से की थी। बीते वर्ष 2016 में लोकसभा में डिसेबिलिटी बिल पास हो गया। इस बिल का मुख्य उद्देश्य दिव्यांगों की परेशानियां कम करना और उनका जीवन खुशहाल बनाना है। इस दिशा में जागरूकता का बेहद अहम रोल है क्यों कि अक्सर देखा गया है कि जागरूकता के अभाव के चलते सरकार की किसी भी योजना का पूरा लाभ जरूरतमंदों तक पहुंच ही नहीं पाता है जिससे योजना की मंशा पर सवाल उठने लगते हैं। इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है कि लोकतांत्रिक देश होने का हवाला देकर हमारे देश में पूरी तरह से परिपक्व योजनाएं भी राजनीति की भेंट चढ़कर अपना मूल स्वरूप खो बैठती हैं।
डिसेबिलिटी एक्ट 2016 हमारे देश के कानून को संयुक्त राष्ट्र के साथ दिव्यांग व्यक्तियों (यूएनसीपीआरडी) के अधिकारों के अनुसार लाएगा। यह यूएनसीपीआरडी के संदर्भ में भारत के दायित्वों को भी पूरा करेगा। यह नया कानून केवल दिव्यांगजनों के अधिकारों को बढ़ायेगा ही नहीं अपितु उनके सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने और समाज में एक संतोषजनक ढंग से शामिल करने के लिए एक प्रभावी तंत्र भी प्रदान करेगा।
21 तरह की डिसेबिलिटी हुईं मान्य :
2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में लगभग 2 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी तरह की डिसेबिलिटी के शिकार हैं। नए आरपीडब्लूडी बिल 2016 में लगभग 21 नई डिसेबिलिटीस की पहचान कर उन्हें डिसेबिलिटी लिस्ट में रखा गया है। इससे पहले पुराने विधेयक में सिर्फ सात तरह की डिसेबिलिटीस को ही दिव्यांगता की श्रेणी में रखा गया था। नए विधेयक की श्रेणी में साइकोलोजिकल डिसेबिलिटी, लिपरोसी, ऑटिस्म, मेंटल इलनेस, स्पेकटर्म डिसोर्डर, सेरेबल प्लासी जैसी गंभीर बीमारियों को भी शामिल किया गया है।
एसिड अटैक शिकार के साथ होगा न्याय :
पुराने विधेयक में कुछ ही डिसेबिलिटीस को मान्य माना गया था लेकिन 2016 एक्ट में एसिड अटैक की शिकार बने लोगों खासकर महिलाओं को भी जगह दी गई है जिसके बाद उनकी एसिड अटैक विक्टम्स को उनके अधिकार मिल सकेंगे।
अब कानूनी तौर पर मिलेगी मदद :
नए विधेयक के जरिए ज्यादा-से-ज्यादा बीमारियों को कवर करने से कानूनी तौर पर ज्यादा दिव्यांग लोगों की मदद की जा सकेगी। एक अनुमान के मुताबिक नए बिल में ज्यादा बीमारियां कवर करने की वजह से लगभग 7 से 10 करोड़ लोगों को फायदा होगा।
कम होगा जीडीपी का नुकसान :
इसके अलावा नए विधेयक के कारण कई दिव्यांग लोगों को रोजगार के नए अवसर भी मिल सकेंगे। वर्ल्ड बैंक के एक अनुमान के मुताबिक दुनिया 15 फीसदी आबादी किसी-न-किसी तरह की डिसेबिलिटीस की शिकार है और इस आंकड़े के अनुमान के हिसाब से देखें तो दिव्यांग लोगों के काम नहीं कर पाने की वजह से जीडीपी का सालाना नुकसान 3-7 फीसदी का होता है।