संस्कृति एवं संभ्यता

रुड़की के कलियर शरीफ में आज भी अहम् है नक्कारे का बजना

रुड़की। जमाना बदला दौर बदले मगर नहीं बदली तो नक्कारे की आवाज और उसकी पहचान। भले ही आज के समय इंसान से तेज भाग रहा है लेकिन कलियर दरगाह के बाहर बजने वाला नक्कारा तो जैसे समय को बांधे हुए है। आज के समय मे भी सूफी संत मोबाइल और घड़ी के अलार्म की बजाय नक्कारे की आवाज सुनकर ही इबादत के लिए उठते है। सुबह और शाम के वक्त नक्कारे की गूंज से ही दरगाह साबिर पाक के खुलने का भी संकेत मिलता है।

कलियर शरीफ में बुलंद दरवाजे के पास नक्कारा बजाने की रवायत वर्षों पुरानी हैं। बताया जाता है कि यह नक्कारा करीब 430 वर्ष पहले से बजता आ रहा है। नक्कारे का मकसद यह था कि इसके बजाने की आवाज से अकीदतमंदों को दरगाह के खुलने का संकेत मिल सकेगा। पुराने जमाने मे सबके पास समय देखने की सुविधा नही थी इसलिए इसे रोजाना सुबह ओर शाम को निर्धारित समय पर बजाया जाता था। यह रवायत आज भी चली आ रही है। दरगाह में नक्कारा सुबह तीन बजे बजता हैं। इससे यह मालूम चलता है कि दरगाह खुल गई है। वहीं शाम को मगरिब की नमाज के बाद नक्कारा बजता है। इसके साथ साथ सालभर होने वाले सजादानशी के कार्यक्रमों के अलावा उर्स में नक्कारे को जोर-जोर से बजाया जाता है। उर्स के दौरान पाकिस्तान से आने वाले जायरीनों का खैरमकदम भी नक्कारे की आवाज के बीच होता है। देश विदेश से आने वाले जायरीनों की फरमाइश पर भी नक्कारा बज उठता है।

नक्कारा बजाने वाले गुलाम साबिर बताते हैं कि अपने पुरखों से चली आ रही रिवायत वह भी निभा रहे हैं। वह कहते हैं कि वह नक्कारा बजाने के साथ दरगाह में आने वाले जायरीनों को यहां का ऐतिहासिक महत्व भी बताते हैं।

Key Words : Uttarakhand, Roorkee, Kalar Sharif, ring, Nakkara

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