पर्यावरण के महत्व को समझाता है चमोली जिले का फाली गांव
घनश्याम मैंदोली
मानसिक और शारीरिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रकृति से बेहतर श्रोत कोई दूसरा नहीं हो सकता। एक ओर जहां शहरों में अब खुली आवोहवा पुरानी बात हो गई है वहीं हमारे गांवों में आज भी पेड़-पौधे, पशु, पक्षी, जीव जंतु और खेतों में काम करते लोग और लहराती फसल जीवन की उमंग से रूबरू कराते हैं।
उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में प्रकृति ने जमकर अपनी खूबसूरती बिखेरी है। इस जिले के विकासखण्ड घाट के तकरीबन सभी गांवों में प्राकृतिक नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं। विकासखण्ड घाट में 82 राजस्व गांव एवं 54 ग्राम पंचायतें हैं। इन्हीं गांवों में शामिल है फाली गांव। गांव की घाट मुख्यालय से दूरी लगभग 03 किमी है। पर्यावरण के महत्व को समझने के लिए इस गांव से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता है।
भौगोलिक स्थिति: भौगोलिक दृष्टिकोण से फाली गांव 273 हैक्टेयर (07 किमी) के क्षेत्र में विस्तृत है। गांव में भवन एक दूसरे से काफी दूर-दूर तक बिखरे हुए हैं। गांव में खेतीबाड़ी वाली 12 हैक्टेयर भूमि है।
जलवायु: आमतौर पर फाली गांव में गर्मी, जाड़ा एवं बरसात का मौसम सामान्य रहता है, लेकिन सर्दियों के मौसम में अधिकांशतः यहां हल्की बर्फवारी भी होती है।
आबादी: आबादी के नजरिए से फाली गांव में 242 परिवार हैं। गांव की कुल जनसंख्या 1210 है। जिनमें 706 पुरुष एवं 504 महिलायें शामिल हैं। गांव में 15 एसटी एवं 35 एससी परिवार हैं। शेष सामान्य जाति के परिवार ब्राह्मण एवं राजपूत जाति के हैं।
आय का जरिया: फाली गांव में खेतीबाड़ी ग्रामीणों की मुख्य आय का साधन है। गांव में सिंचाई के साधन की कमी के चलते कुछ कृषि भूमि असिंचित भी है जहां कम पानी की मांग वाली फसलें उगाई जाती हैं।
फसल उत्पादन: गांव में नकदी फसलें जिनमें गेहूं, धान, मंडुवा, कालीदाल, रेस की दाल, तोर, राजमा, आलू आदि की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। फलों में माल्टा, संतरा, नींबू, आम, अमरूद एव ंनाशपाती फलों का उत्पादन भी किया जाता है।