उत्तराखंड

दून में जानलेवा बनती जहरीला हवा

वायु प्रदूषण देहरादूनवासियों के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। यह बात नहीं कि दूनवासी शहर की जहरीली हवा को महसूस नहीं कर रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि मानवीय जरूरतों के आगे यह दर्द जानलेवा बनकर भी नजरअंदाज किया जा रहा है। अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बीते महीनों विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देहरादून को दुनिया का 31 वां सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया था, लेकिन हालात सुधरने की जगह और भी खराब होते नजर आ रहे हैं। इस विषय पर देहरादून स्थित उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से देवभूमि लाइव पोर्टल” के वेब एडीटर पंकज भार्गव की खासबातचीत पर एक रिपोर्ट –

उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के सीईओ अमरजीत सिंह का कहना है कि देहरादून में वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में वाहनों की बढ़ती संख्या और इमारतों के निर्माण से पैदा हो रही धूल मिट्टी है। चिंता की बात यह है कि वायु प्रदूषण के मामले में हम तय मानकों के अनुसार डेन्जर जोन की बोर्डर लाइन के आस-पास ही हैं। उन्होंने बताया कि दून घाटी की बनावट के कारण यहां जमा प्रदूषण एक निश्चित दायरे में घूमता रहता है। जिस कारण दून शहर में प्रदूषण का पैमाना स्थिर नहीं है। यह घटता-बढ़ता रहता है। उन्होंने बताया कि प्रदूषण को मापने के लिए उत्तराखंड में संभावित सर्वाधिक प्रदूषण वाले 8 शहरों में प्रदूषण मापक यंत्र लगाये गये हैं। जिनमें देहरादून में 3, हरिद्वार में 1, ऋषिकेश 1, काशीपुर 1 व हल्द्वानी में 1 शामिल है। सीईओ सिंह कहते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन के बाद हांलाकि देहरादून सहित राज्य के अन्य स्थानों पर सड़कों की स्थिति में तो सुधार आया है, लेकिन चौपहिया वाहनों की संख्या में भी बेहिसाब बढ़ोत्तरी हुई है जो वायु प्रदूषण की दिशा में एक चिंता का विषय है। बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार वाहनों की सर्वाधिक आवाजाही वाले क्षेत्र देहरादून के पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। जिनमें घंटाघर, आईएसबीटी आदि क्षेत्र शामिल हैं।

कौन है जिम्मेदार ?
बोर्ड का कहना है कि शहर की संरचना और दूनघाटी के लिहाज से शहरवासियों को स्वेच्छापूर्वक वाहनों के इस्तेमाल करने पर अंकुश लगाना होगा। वायु प्रदूषण को रोके जाने की दिशा में वाहनों के प्रदूषण सम्बंधी जांच के लिए परिवहन विभाग जिम्मेदार है। विभाग की सक्रियता ही इस कार्य के लिए अहम है। इमारतों के निर्माण के लिए भी सख्त प्रदूषण रोकने के लिए सख्त नियम अमल में लाने होंगे। पुराने विक्रमों पर रोक लगाने की कयास को सराहनीय बताते हुए उन्होंने कहा कि सीएनजी गैस के इस्तेमाल की बात सुनी जा रही है, लेकिन सरकार इस दिशा में कितनी तेजी दिखाती है यह जरूरी है।

…तो सर्वाधिक प्रदूषित आंकड़े रहे कारण
बीते महीनों विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से देहरादून को सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल किए जाने और 31 वां स्थान दिए जाने के सवाल पर बोर्ड का कहना है कि प्रदूषण के स्तर के सर्वाधिक दिनों के आंकड़ों के अनुसार ऐसा हुआ। जबकि दिन और मौसम के अनुसार यह आंकड़ा कम-ज्यादा होता रहता है।

क्या बोर्ड की कार्यवाही से सुधर पाएंगे हालात ?
प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में लोगों को जागरूक किए जाने के बारे में बोर्ड का कहना है कि समय-समय पर परिवहन विभाग को प्रदूषण के आंकड़ों से अवगत कराया जाता है साथ ही प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों की पूरी तरह से निगरानी और नियमों का पालन न करने पर नोटिस भेजा जाता है। वायु प्रदूषण के अतिरिक्त बोर्ड गंगा-यमुना व अन्य नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए एनजीटी के नियमों का पालन करवाने की दिशा में भी कार्यरत है। नदियों में गंदगी बहाने वाली व्यवसायिक इकाईयों को पर्यावरण संरक्षण हेतु बनाये गए नियमों का पालन न करने पर नोटिस भेजा जाता है।

फंड की कमी नहीं फिर भी लेटलतीफी !
बोर्ड का कहना है कि उनके पास फंड की कमी नहीं है, लेकिन कहीं न कहीं सरकारी सिस्टम की लेटलतीफी की वजह से प्रदूषण कम करने के प्रयास अभी आधे-अधूरे ही हैं, लेकिन प्रयास जारी हैं। बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार हरिद्वार स्थित बीएचईएल की प्रदूषण कंट्रोल इकाई के साथ मिलकर दून में प्रदूषण रोकने का एक्शन प्लान बनाया जाना प्रस्तावित है।

Key Words : Uttarakhand, Dehradun, Poisonous air, Environment protection and pollution Control Board

 

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