सफलता की कहानी : भगवती देवी की आर्थिकी का जरिया बने रेशम कीट

पंकज भार्गव
खुद का रोजगार करने के लक्ष्य में कुछ लोगों के लिए मोटी रकम बाधा बन जाती है, जिसके चलते उनका सपना कभी साकार नहीं हो पाता है। वहीं समाज में कुछ ऐसी शख्सियत भी हैं जो आर्थिकी को बेहतर बनाने के लिए अपनी मेहनत और लगन पर ही विश्वास रखते हैं। एक ऐसी ही सफलता की कहानी है देहरादून के डोईवाल ब्लॉक में थानो मार्ग पर स्थित पाववाला सौड़ा गांव निवासी भगवती देवी की।
भगवती देवी बताती हैं कि उनका सपना था कि वह खुद का कोई व्यवसाय शुरू करें। ब्लॉक के माध्यम से उन्हें रेशम कीट व्यवसाय योजना के बारे में पूरी जानकारी एकत्र की। वह बताती हैं कि रेशम विभाग ने उन्हें इस कार्य को शुरू करने के लिए 45 हजार रुपये की धनराशि इस शर्त के साथ दी कि उन्हें 10 साल तक इस कार्य से जुड़ा रहना होगा। रेशम कीट पालन का व्यवसाय उन्होंने करीब 4 साल पहले शुरू किया जिसके लिए विभाग की ओर से रेशम के कीट और उनके रखरखाव के लिए सभी व्यवस्थाएं मुहैया कराई गईं। बस फिर क्या था कीटों की देखरेख और उन्हें समय पर भोजन उपलब्ध करवाना उनकी दिनचर्या बन गया।
उन्होंने बताया कि रेशम के कीटों का मुख्य आहार शहतूत के पत्ते होते हैं जिन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर कीटों के लिए परोसा जाता है। रेशम के कीट 20-25 दिन में तैयार हो जाते हैं। जिसके बाद विभाग की ओर से डोईवाल ब्लॉक में हर महीने नियत तिथि पर लगने वाली मंडी में तकरीबन 300 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उन्हें कीटों की रकम उन्हें मिल जाती है। भगवती कहती हैं कि हर माह उन्हें इस काम से 3-4 हजार रुपये घर बैठे मिल जाते हैं। भविष्य में वह इस काम को और अधिक मात्रा में करने की बात भी कहती हैं। वहीं गांव की सुशमा देवी, कांती रावत, रेखा देवी, रीता आदि ने भी अपने आर्थिकी को मजबूत बनाने के लिए रेशम कीट पालन के काम को करना शुरू कर दिया है।
Key Words : Uttarakhand, Dehradun, Doiwala Block, Silkworm, Economics