अगलाड़ नदी में परंपरागत तरीके से मनाया गया मौण मेला

कुलदीप शाह
जौनपुर/टिहरी। टिहरी जनपद के जौनपुर ब्लॉक की अगलाड़ नदी में प्रसिद्ध मौण मेला धूमधाम एवं परंपरागत तरीके से मनाया गया। मेले में ग्रामीणों ने पूजा-अर्चना के बाद अगलाड़ नदी में प्राकृतिक जड़ी बूटी टिमरू का पाउडर डालकर मछली पकड़ने की शुरुआत की। इस आयोजन में तकरीबन तीन हजार लोग मौजूद रहे।
मौण मेले के आयोजन की तैयारियों को लेकर ग्रामीण टिमरू के तनों को काटकर इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। मौण, टिमरू के तने की छाल को सुखाकर तैयार किए गए महीन चूर्ण को कहते हैं। इसे पानी में डालकर मछलियों को बेहोश किया जाता है। टिमरू का उपयोग दांतों की सफाई के अलावा कई अन्य औषधियों में किया जाता है। मेले से कुछ दिन पूर्व टिमरू के तनों को आग में हल्का भूनकर इसकी छाल को ओखली या घराटों में बारीक पाउडर के रूप में तैयार किया जाता है।
पुराने लोग बताते हैं कि मौण मेला टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह ने स्वयं अगलाड़ नदी में पहुंचकर शुरू किया था। वर्ष 1844 में मतभेदों के कारण यह बंद हो गया। वर्ष 1949 में इसे दोबारा शुरू किया गया। राजशाही के जमाने में अगलाड़ नदी का मौण उत्सव राजमौण उत्सव के रूप में मनाया जाता था। उस समय मेले के आयोजन की तिथि और स्थान रियासत के राजा तय करते थे। जानकारों कि माने तो टिमरू का पाउडर जलीय जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाता। इससे केवल कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं और इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुंडियाड़ा, फटियाड़ा, जाल और हाथों से पकड़ते हैं। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पातीं वे बाद में पानी में पुनः जीवित हो जाती हैं।