यात्रा वृतांत : कभी असम आना अच्छी जगह है !
रोहित श्रीवास्तव
मेरी आदत है मैं सफर के दौरान लोगों से घुलना मिलना और बातचीत करना करना पसन्द करता हूॅं। जबकि अक्सर लोग ऐसे समय में या तो झपकी लेते या फिर मोबाइल के ईयर फोन कानों में लगाकर अपनी दुनिया में खोये रहते हैं। उस दिन भी जब में दल्ली से लौट रहा था तो मेरी बस में कुछ ऐसे ही हालात नजर आ रहे थे। बस से बाहर की दुनिया झांक कर जब मैं बोर हो गया तो मैं बहुत ही असहज महसूस करने लगा। इसी दौरान रास्ते एक स्टेशन पर बस में एक युवक चढ़ा और मेरी बगल वाली सीट पर बैठ गया।
युवक करीब 20-22 साल का होगा। बातचीत हुई तो पता चला कि वह युवक आर्मी ट्रेनिंग के दौरान छुट्टी बिताकर वापस रुड़की जा रहा था। मेरी सफर अभी काफी लंबा था। कुछ देर बाद मैंने अपने बैग से किताब निकाली और पढ़ने की कोशिश करने लगा। बगल की सीट पर बैठा वह युवक मेरी किताब का टाइटल ‘भारत का सँविधान’ पढ़कर मुझसे कुछ सवाल करना चाहता था। मेरी नजर उसके चेहरे पर पढ़ते ही वह तपाक से बोला‘ अरे सफर के दौरान भी पढ़ाई-लिखाई! वो भी कानून और संविधान की ! आप कैसे कर लेते हो ये सब ? मैंने मुस्कराकर उस युवक को कहा ‘ये हमारा पेशा है। जितनी भी पढाई कर लो कम है।’ युवक की बातचीत करने की उत्सुकता और मेरी बातचीत करने की मुराद जैसे पूरी हो गई थी।
मैंने किताब बंद की और युवक के साथ आत्मीयता के साथ बातचीत शुरू कर दी। मेरे पूछने पर युवक ने बताया कि वह असम का रहने वाला है। मैंने युवक को बताया कि मेरा भी एक दोस्त गुवाहाटी पोस्टेड है। मैंने सवाल किया कि असम तो काफी डेवलेप स्टेट है ? युवक का जवाब बेहद चौंकाने वाला था उसने कहा नहीं ! उसने बताया कि हमारे स्टेट में इंटरनल डिस्टरर्बेंस के चलते आम जीवन सामान्य नहीं है। हां कुछ इलाकों में जरूर शांति का माहौल है, लेकिन मणिपुर के हालात बिलकुल भी ठीक नहीं कहे जा सकते हैं। मैंने युवक से अगला सवाल किया कि वहॉ शिक्षा और रोजगार का स्तर कैसा है। युवक का जवाब फिर निराशा से भरा था। उसने बताया ‘असम में बढ़ती नशाखोरी बेहद चिंतनीय विषय है। युवक-युवतियों के अलावा स्कूल के बच्चे भी कोकीन, ड्रग्स, गाँजा जैसे नशों का शिकार बनते जा रहे हैं। रोजगार को लेकर युवक का जवाब बेहद सटीक था उसने कहा ‘रोजगार अगर हमारे यहां होता तो कौन अपना घर और शहर छोड़ना चाहेगा। मैंने पूछ़ा मीडिया में अक्सर बांग्लादेशियों की घुसपैठ के बारे में सुनने को मिलता है इस बात में कितनी सच्चाई है तो वह युवक बोला ‘बाँग्लादेश और भारत के बीच मे ब्रह्मपुत्र और इधर कामाख्या घुसपैठिये अक्सर रात मे नाव से आते हैं। उसने बताया कि घुसपैठी कई अन्य तरीके भी इस्तेमाल करते हैं और एक बार हमारी सीमा में घुसने के बाद वह अपने आप को सन् 1971में आया बताते हैं। युवक का की यह बात बेहद आहत करने वाली थी उसने कहा हमारे स्थानीय नेता वोट के चलते उन घुसपैठियों के आका बन जाते हैं। नेताओं की कार्यशैली से युवक की बातों में खासी नाराजगी झलकी और समझी जा सकती थी। मैंने युवक को शांत करने के लिए अगला सवाल करना सही समझा। मैंने पूछा असम में मौसम कैसा रहता है ? वह बोला ‘यहाँ से तो बहुत अच्छा है। हमारा गाँव बहुत अच्छा है। हाँ सुविधाऐँ कम है लेकिन फिर भी अच्छा है। छुट्टी पर घर गया था। अभी ट्रेनिँग के लिए वापस जा रहा हूॅ। घर की याद भुला नहीं पा रहा हूॅ। उसने बताया घर रोज 9.00 बजे उठता था। अब कल से फिर सुबह 4 बजे हाजरी देनी होगी। कुछ दिन तक तो घर की बहुत याद आएगी। उसने बताया उसका एक दोस्त जो मणिपुर से है वह भी उसी के साथ आर्मी की टेर्निंग ले रहा है, जिसके साथ अपनी भाषा में बातचीत कर अच्छा लगता है।
अचानक युवक ने मेरे से सवाल किया – अच्छा आप कहाँ जा रहे हो ? मैँ बोला, ‘देहरादून।’ उसने बताया कि वह भी एक बार देहरादून आ चुका है। मैं मुस्कुराया। बातचीत के दौरान पता ही नहीं चला कब रूड़की स्टेशन आ गया। युवक ने अपना सामान उठाते हुए मुझसे हाथ मिलाया और कहा ‘कभी असम आना अच्छी जगह है। मैं मुस्कुराया और कहा ‘ जरूरी आऊँगा।’
(लेखक पेशे से एडवोकेट हैं।)