यमुनोत्री को पृथक जिला बनाए जाने की मांग – आंदोलनकारियों ने नहीं सुनी विधायक व जनप्रतिनिधियों की बात
कुलदीप शाह
बड़कोट/उत्तरकाशी। यमुनोत्री क्षेत्र को पृथक जनपद बनाये जाने की मांग तेज होती जा रही है। रवांईघाटी के लोगों ने अलग जनपद की मांग पर सरकार की लंबे समय से की जा रही अनदेखी से नाराज होकर आर-पार की लड़ाई के लिए ताल ठोक दी है। लंबे समय से धरना-प्रदर्शन पर शासन व प्रशासन की ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया न मिलने के बाद रंवाई के लोगों ने बीती 15 अगस्त से बड़कोट तहसील परिसर में क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की हुई है।
दरअसल, 15 अगस्त 2011 को उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने प्रदेश में चार नए जिले बनाने की घोषणा की थी। जिनमें रवांईघाटी में यमुनोत्री को जिला बनाए जाने का आश्वासन दिया गया था। सरकार की इस घोषणा पर सात साल बीतने के बाद भी किसी तरह की कार्यवाही न होने से गुस्साए रवांईघाटी के लोगों ने अब आरपार की लड़ाई छेड़ दी है। मामले में लामबंद तरीके से बड़कोट, नौगांव, पुरोला और मोरी आदि में लामबंद तरीके से अलग जिले के निर्माण की आवाज उठाई जा रही है।
यमुनोत्री जिले की मांग को लेकर बनाई गई संघर्ष समिति के अध्यक्ष अब्बल चन्द कुमांई का कहना है कि वर्ष 1960 में उत्तरकाशी जिला बनने के बाद विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण रवांईघाटी के लोगों को जिला मुख्यालय जाने में ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जिसके चलते 1975 से रवांईघाटी को पृथक जनपद बनाने की मांग की जाने लगी। उनका यह भी कहना है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लोगों को अपनी सरकारों से काफी उम्मीदें थी। प्रदेश में छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाईयां बनेंगी, जिससे गांवों तक विकास की किरण पहुंचेगी, लेकिन आज यहां के लोग अपनी बनाई सरकार के आगे खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। रवांईघाटी से देहरादून जाना आसान है वहीं उत्तरकाशी जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए काफी कठनाई होती है। बरसात के महीनों व बर्फबारी के समय रवांईघाटी से जिला मुख्यालय जाना असंभव हो जाता है। उन्होंने चेतावनी दी है कि रंवाई के लोगों अलग जिले की मांग पूरी होने के बाद ही अब आंदोलन थमेगा।
मंगलवार को आमरण अनशन स्थल पर पूर्व काबीना मन्त्री नारायण सिंह राणा, यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत, जिला पंचायत अध्यक्ष जशोदा राणा सहित भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम डोभाल भूख हड़ताल पर बैठे लोगों से वार्ता के लिए पहुंचे, लेकिन उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा। आंदोलनकारियों का कहना है कि अब कोरे आश्वासन से काम नहीं चलेगा। उनकी मांग पर कार्यवाही के बाद ही आंदोलन को खत्म किया जाएगा।