संरक्षण और विकास के बीच समन्वय महत्वपूर्ण : प्रणव
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के सत्र 2015-17 के भारतीय वन सेवा परिवीक्षार्थियां का दीक्षान्त समारोह
देहरादून। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून के सत्र 2015-17 के भारतीय वन सेवा परिवीक्षार्थियां का दीक्षान्त समारोह शुक्रवार को वन अनुसंधान संस्थान के दीक्षान्त गृह में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, समारोह के मुख्य अतिथि और राज्यपाल डॉ. कृष्णकांत पाल व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रशिक्षु अधिकारियों को उनकी सफलता पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी द्वारा युवा अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण भविष्य में उनके सामने आने वाली कठिन चुनौतियों के लिए तैयार करता है। उन्होंने भारत में वानिकी प्रबंधन और प्रशिक्षण के इतिहास की ओर झांकते हुए अतीत और वर्तमान के संदर्भ में वानिकी संरक्षण के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने संरक्षण और विकास के बीच समन्वय कायम करने पर बल दिया क्योंकि ये दोनों ही मानवता के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि लगभग 30 वर्ष पहले की तुलना में वर्तमान में देश के वनावरण में बढ़ोत्तरी हुई है। फोरेस्ट कवर 30 प्रतिशत होना चाहिए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने नए अधिकारियों से इस दिशा में और अधिक दूरदर्शिता से कार्य करने का आह्वान किया।
राष्ट्रपति ने युवा अधिकारियों को सलाह दी कि गरीबी के उन्मूलन द्वारा वनों के समक्ष उत्पन्न खतरों को एक अवसर में बदलने का माध्यम बन सकते हैं। उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि युवा पेशेवर होने के नाते आपको यह ध्यान रखना है कि आपको देश की पर्यावरणीय नींव पर दीर्घकालिक असर डालने वाले निर्णय लेने में सक्षम होना होगा।
उन्होंने युवा अधिकारियों से कहा, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधक के रुप में आपका पहला कर्तव्य वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करते हुए वनों की रक्षा और उनकी उत्पादकता में वृद्धि करना तथा सामान्य जन की वनों से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति होना चाहिए। देश के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण ही अंततः पारिस्थितिकीय सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उन्होंने सूखते जलाशयों और जलस्त्रोतों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की।
उत्तराखण्ड के राज्यपाल डॉ. कृष्णकांत पाल ने कहा कि उत्तराखण्ड देश के सबसे समृद्ध वन क्षेत्रों में से एक है और राज्य की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका और निर्वाह के लिए पूर्णतः वनों पर ही निर्भर है। राज्य के सामने पहली चुनौती यह है कि वनों को फिर से उगाने और उनके संरक्षण में भागीदारी के लिए लोगों को तैयार किया जाए, तभी वनों का स्थाई प्रबंधन संभव है।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने संबोधन में नए अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि उनका कैरियर काफी चुनौतीपूर्ण है उन्हें याद रखना चाहिए कि वैज्ञानिक और विकास सम्बन्धी गतिविधियों के नाम पर पर्यावरण व वनों की अनदेखी न हो और सतत विकास के लक्ष्य प्राप्त हो सके।
इस अवसर पर केद्रीय (राज्य) मंत्री वन एवं पर्यावरण श्री अनिल माधव दवे सहित इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के निदेशक डॉ. शशि कुमार ने भी अपने विचार रखे। उत्कृष्ट उपलब्धियां प्राप्त करने वाले परिवीक्षार्थियों को समारोह में विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए गए।
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