” यात्रा वृतांत ” … पैसे की मोहताज नहीं होतीं खुशियां
पंकज भार्गव
देहरादून जिले के कालसी ब्लाॅक की तलहटी में प्रकृति की रमणीकता मन को मोहित करने वाली है। दूर-दूर तक खेतों में बिखरी हरियाली के बीच बसा है व्यास नहरी गांव। इसी गांव में अपने भरे पूरे परिवार के साथ रहती हैं नीलम तोमर। नीलम के पति घर से ही कपड़े सीने का काम करते हैं। थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी लायक जमीन पर होने वाली चावल व गेहूं की फसल के लिए पूरा परिवार मिलकर मेहनत-मुशक्त करता है। घर खर्च तीन बेटों की पढ़ाई-लिखाई की राह में हमेशा ही बाधा बनकर खड़ा रहा।
बातचीत के दौरान नीलम जी ने बताया कि बड़े बेटे की शादी हो गई है। वह मोमो, चाउमीन की ठेली लगाता है। उसके काम को मजबूती देने के लिए परिवार के सभी सदस्य मिलकर उसके काम में हाथ बंटाते हैं। बीच वाला बेटा देहरादून में प्राइवेट काम करता है। सबसे छोटा बेटा दूध और मशरूम का काम घर पर ही करने की योजना बना रहा है। नीलम जी ने बताया कि लोन पास हो गया है और वह एक गाय भी ले आया है।
गरीबी और लाचारी के हालातों को पीछे छोड़कर नीलम का परिवार आने वाले हर दिन की चुनौती के लिए तैयार दिखाई देता है। नीलम जी पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती हैं कि उनके तीनों बेटे पढ़़लिख नहीं पाये लेकिन उन्होंने घर की परिस्थितियों को समझा और उन्होंने परिवार के स्वरूप को बिगड़ने नहीं दिया।
मैंने चाय खत्म की और नीलम जी और उनके परिवार से विदा ली। नीलम जी के परिवार की एकजुटता को देखकर यह कहना कतई गलत न होगा कि खुशियां पैसे की मोहताज नहीं होती।