आस्था के प्रतीक : त्रेता युग में वर्णित है लक्ष्मण सिद्धपीठ
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से हरिद्वार जाने वाले मार्ग पर हर्रावाला में जंगल के मध्य में स्थित है आस्था का प्रतीक लक्ष्मण सिद्धपीठ मंदिर। कहा जाता है कि इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम व उनके भाई लक्ष्मण द्वारा रावण का वध करने के बाद बह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए तप किया था। राम ने सरयू तट पर और लक्ष्मण ने इसी सिद्ध स्थान पर आकर तप किया था। जिसके चलते यह स्थान लक्ष्मण सिद्ध के नाम से विख्यात हुआ। यहां समाधि के रूप में पूजा स्थल विद्यमान है। इस मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि यहां पर सच्चे मन से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है।
सिद्धपीठ के महन्त भारत भूषण बताते हैं कि श्रीमद् भगवत् पुराण के तेरहवें व चौदहवें अध्याय में त्रेता युग के सिद्ध पीठों का वर्णन है जिनमें से एक लक्ष्मण सिद्ध पीठ भी है। लक्ष्मण सिद्ध परिसर में तीन मुखी और पंचमुखी दो रुद्राक्ष के वृक्ष हैं जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। सिद्धपीठ से चार सौ मीटर की दूरी पर एक चमत्कारी कुआं भी तीन से चार फुट की गहराई पर ही पानी मौजूद है। कहा जाता है कि पहले इस पानी का रंग दूध के समान था, लेकिन समय के साथ-साथ अब इसका रंग बदल गया है। इस कुएं पानी स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त ही लाभकारी है जिसकी वजह इस स्थान पर प्राकृतिक जड़ी बूटियों का होना बताया जाता है।
सिद्धपीठ में विशेष आस्था का केंद्र अखण्ड धूनी है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यह तब से है जब से यह सिद्धपीठ उजागर हुआ। मंदिर में लगने वाला भोग इस धूनी में ही तैयार किया जाता है। हांलाकि यहां का प्रसाद मुख्य रूप से गुड़ की भेली है।
लक्ष्मण सिद्ध मंदिर में हर साल अप्रैल माह कि अंतिम रविवार को विशाल भंडारे का आयोजन मंदिर समिति की ओर से किया जाता है। इसके अलावा तकरीबन हर रविवार को कोई न कोई श्रद्धालु भंडारे का आयोजन करते रहते हैं।
कैसे पहुंचें -:
लक्ष्मण सिद्धपीठ मंदिर देहरादून से हरिद्वार जाने वाले मार्ग पर मात्र 11 किमी की दूरी पर जंगल के बीच शांत और सुरम्य वातावरण में स्थित है। हर्रावाला रेलवे स्टेशन से इस स्थान की दूरी करीब 2 किमी है।
Key Words : Uttarakhand, Dehradun, Laxman Sidhpith,Treta era