प्रकृति संरक्षण के लिए गांव बचना जरूरी : डॉ. जोशी

देहरादून। उत्तराखण्ड जैव विविधता बोर्ड की ओर से आयोजित गोष्ठी में जैव विविधता संरक्षण, रणनीति एवं कार्ययोजना विषय पर मंथन किया गया। हेस्को के संस्थापक एवं गांव बचाव आन्दोलन को नई दिशा देने वाले डॉ अनिल जोशी ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। उन्हांने कहा कि यदि सच्चे अर्थों में हमें जैव विविधता को संरक्षित करना है तो सबसे पहले हमें गांवों को बचाना होगा।
डॉ अनिल जोशी ने जैव विविधता के संरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि आज उत्तराखण्ड में जल और जंगल संकट में है तथा गांव की अनदेखी के कारण बड़े पैमाने पर शहरों की ओर लगातार पलायन जारी है। उन्होंने कहा कि यदि गांव बचेंगे तभी जैव विविधता संरक्षण की बात की जा सकती है। गांव के वाशिदों को उनके मूलभूत अधिकार सुरक्षित करते हुए प्रकृति के साथ उनके रिश्तों को कायम करना होगा।
उन्होने कहा कि एक ओर प्रदेश में लगातार आयुष प्रदेश की बात की जा रही है तो दूसरी ओर ग्रामीण आंचल में कोई भी हरबल उद्योग स्थापित नही किया गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि यदि हमें प्रकृति के साथ जनमानस को सुरक्षित करना है तो विकास का रास्ता गांव से होकर गुजारना होगा, जिसकी शायद आज के समय में सबसे अधिक कमी महसूस की जा रही है।
गोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ बीएस बर्फाल भूतपूर्व अध्यक्ष उत्तराखण्ड जैव विविधता बोर्ड एवं प्रमुख वन संरक्षक (सेवानिवृत्त) ने कहा कि राज्य में जैव विविधता अधिनियम 2002 के प्राविधानों के क्रियान्वयन हेतु वर्ष 2006 में जैव विविधता बोर्ड की स्थापना की गयी थी। इस अधिनियम के प्राविधानों को लागू करने में प्राकृतिक तथा घरेलू वनस्पति तथा जीव जन्तुओं से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न विभागों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
इस मौके पर डॉ वी.बी माथुर, निदेशक भारतीय वन्यजीव संस्थान तथा प्रमुख वन संरक्षक (परियोजना प्रबन्धक) उत्तराखण्ड ने भी अपने विचार व्यक्त किये। गोष्ठी में वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान सहित राष्ट्रीय तथा राज्य के जैव विविधता तथा वन्यजीव संरक्षण से जुड़े हुए विभागों के अधिकारियों ने प्रतिभाग किया।
Key Words : Uttarakhand, Dehradun, Need to Save the Village, protection Of Nature