अब कुमांऊ केसरी बद्रीदत्त पाण्डे के नाम से जाना जाएगा सचिवालय स्थित मीडिया सेंटर
देहरादून। उत्तराखंड सचिवालय स्थित मीडिया सेंटर अब कुमांऊ केसरी बद्रीदत्त पाण्डे के नाम से जाना जाएगा। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बुधवार को सचिवालय स्थित मीडिया सेन्टर के नए नाम की पट्टिका का विमोचन किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि बद्रीदत्त पाण्डे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रज सेनानी रहे। जब भारत अंग्रेजों की गुलामी की दास्तां से त्रस्त था, उस समय उन्होंने अल्मोड़ा अखबार निकाला और उसके बाद शक्ति समाचार पत्र के माध्यम से आजादी के आंदोलन की अलख जगाई। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से क्रांतिकारियों एवं देश के युवाओं को भारत की स्वतंत्रता के लिए जन आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। उत्तराखण्ड की पत्रकारिता के इतिहास में बद्रीदत्त पाण्डे का उल्लेखनीय योगदान रहा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मकर संक्रांति के बाद हमारे त्योहारों का सीजन शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति, उत्तरायणी, घुघुत्या त्योहार हमने हाल ही मे मनाए हैं। 1921 में मकर संक्रांति के दिन स्व. बद्रीदत्त पांडे जी ने बागेश्वर में सरयू नदी के तट पर कुली बेगार प्रथा के खिलाफ निर्णायक आंदोलन छेड़ा। पांडे जी की कुशल नेतृत्व और जज्बे के आगे अंग्रेजी हूकुमत ने घुटने टेके और मकर संक्रांति के दिन ही कुली बेगार प्रथा को खत्म करने का ऐलान किया। कुली बेगारी के रजिस्टर सरयू नदी में बहा दिए गए। इस दिन सरयू क्षेत्र में जश्न मनाया गया। यह मकर संक्रांति बहुत खास थी। इसलिए मुझे दोगुनी खुशी है कि इस मीडिया सेंटर का नामकरण बद्रीदत्त पांडे जी के नाम से उसी मकर संक्रांति पर्व के दौरान हो रहा है, जिस दौरान 1921 में एक बड़ी सामाजिक बुराई का अंत किया गया था।
इस अवसर पर सूचना सचिव पकंज कुमार पाण्डेय, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट, मीडिया समन्वयक दर्शन सिंह रावत, अपर निदेशक सूचना डॉ. अनिल चन्दोला, संयुक्त निदेशक राजेश कुमार आदि उपस्थित थे।
कौन थे बद्रीदत्त पांडे :
कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे एक प्रख्यात पत्रकार, इतिहासकार, समाजसेवी व स्वतंत्रता सेनानी थे। बद्री दत्त जी को कुली बेगार प्रथा को खत्म करने वाले नायक के रूप में भी जाना जाता है। पांडे जी का जन्म 15 फरवरी 1882 को हरिद्वार में हुआ था लेकिन बाद में इनका परिवार अल्मोड़ा शिफ्ट हो गया था। 1903 से बद्रीदत्त जी पत्रकारिता के क्षेत्र में आए, और 1910 तक देहरादून में लीडर नाम के अखबार में काम किया। 1913 में अल्मोड़ा अखबार की शुरुआत की और आजादी के आंदोलन में योगदान दिया। इन्होंने अखबार के माध्यम से अंग्रेजों की नीतियों का खुलकर विरोध किया जिसके चलते कई बार अखबार को बंद होना पड़ा। बद्री दत्त जी ने 1917 में स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा देने के लिए कुमाऊं परिषद की स्थापना हुई। इसमें भारत रत्न पं.गोविंद बल्लभ पंत, बद्रीदत्त पांडे, तारा दत्त गैरोला, बद्री दत्त जोशी, प्रेम बल्लभ पांडे, बैरिस्टर मुकंदी लाल, इंद्र लाल साह, मोहन सिंह दरम्वाल रहे। इस दौरान कुमाऊं क्षेत्र में कुली बेगार प्रथा के खिलाफ आवाजें उठनी शुरू हुई।…1920 में महात्मा गांधी के नागपुर अधिवेशन में बद्रीदत्त पांडे के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल कुली बेगार अन्याय को लेकर मिला। 1921 में बद्रीदत्त पांडे ने कुमाऊं कमिश्नर के खिलाफ कुली बेगार प्रथा खत्म करने के लिए निर्णायक आंदोलन किया। मकर संक्रांति के दिन सरयू नदी के तट पर हजारों लोग पांडे के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट हुए। भारी जनदबाव के बीच कुमाऊं कमिश्नर को कुली बेगार के रजिस्टरों को सरयू नदी में प्रवाहित किया गया। इस आंदोलन के बाद बद्रीदत्त जी को कुमाऊं केसरी की उपाधि दी गई। इसके बाद भी बद्रीदत्त जी लगातार स्वतंत्रता के आंदोलनो में भाग लेते रहे और समय समय पर जेल जाते रहे। 1921 मे एक साल, 1930 में 18 महीने, 1932 में एक साल और 1941 मे तीन महीने के लिए जेल में रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गांव-गांव जाकर सत्याग्रहियों के साथ स्वाधीनता आंदोलन आगे बढ़ाते रहे। आजादी के बाद अल्मोड़ा में रहकर सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे..1957 के लोकसभा उपचुनाव में सांसद चुने गए। 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान अपने सारे मेडल और पुरस्कार सरकार को भेंट कर दिए। 13 फरवरी 1965 को उनका निधन हो गया।
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