संस्कृति एवं संभ्यता

बात हिमाचल की करें तो …

पंकज भार्गव …

कुछ दिनों पहले एक साइकिलिंग ट्रिप के दौरान मैंने अपने मित्र अनिल मित्तल सर से हिमाचल राज्य के मैक्लॉडगंज घूमने की बात रखी तो घुम्मकड़ प्रवृत्ति के धनी और एडवेंचर के शौकीन मित्तल सर ने बिना देर किए अपनी सहमति प्रदान कर दी। इस यात्रा पर जाने की मेरी मुख्य वजह हिमाचल में पयर्टन खासतौर पर होमस्टे काॅनसेप्ट पर जानकारी हासिल करना था। पहले भी हिमाचल के कुछ हिस्सों में मुझे जाने का अवसर मिला था जिसके चलते वहां का परिवेश और वातावरण मेरे दिलोदिमाग के एक हिस्से में रचाबसा हुआ है। मौसम के लिहाज से अक्टूबर का महीना सबसे बेहतरीन माना जाता है। हमने इस महीने के पहले हफ्ते में अपना चार दिन का टूर बनाया और राॅयल इनफील्ड बाइक से लगभग 1300 किमी की यात्रा पर निकल पड़े।

पंजाब और हरियाणा के कहीं धूल भरे तो कहीं सलीखे भरे रास्तों से गुजरते हुए हम पहले दिन शाम 7.00 बजे मैक्लॉडगंज पहुंच गए। आॅन लाइन बुकिंग के माध्यम से जोस्टल डाॅरमेटरी में पहुंचते ही बाहर बारिश शुरू हो गई थी। मौसम की ठंडक ने हमारी सारी थकान को भुला दिया। जोस्टल में रात गुजारने का मेरा पहला अनुभव बेहद शानदार रहा। हाॅस्टल स्टाइलया यूं कहिये टेªन के फस्ट एसी कम्पाॅटमेंट की तरह बैडिंग पर सोना एक सुखद एहसास भरा था। देर रात तक हम अन्य स्थानों से मैक्लॉडगंज घूमने आए सहयात्रियों के साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़े कई विषयों पर बातचीत करते रहे। देश के अलग-अलग राज्यों से घूमने आए अधिकतर युवा वर्ग की जागरूकता और आत्मविश्वास देखते ही बनता था।

मैक्लॉडगंज की सुबह का नजारा अविस्मरणीय कहना गलत न होगा। खुशनुमा मौसम जैसे हमारे स्वागत में बादलों को धरती पर उतार लाया था। चाय पीने के बाद हमने दलाईलामा मंदिर जाने का कार्यक्रम बनाया और सुबह 7.00 बजे हम मंदिर पहुंच गए। मंदिर के बाहर दर्शन करने वालों में तिब्बती समुदाय के साथ विदेशियों की लंबी लाइन देखकर हमने अंदाज लगाया कि डलहाॅजी पहुंचने की हमारी तय रणनीति बाधित हो सकती है और हमने बाहर से ही मंदिर के दर्शन किए और नाश्ता करने निकल गए।

मैक्लॉडगंज से डलहौजी तक का सफर पहाड़ी रास्ते वाला और बेहद थकान भरा था लेकिन शाम करीब 4.00 बजे हम खज्जार पहुंच गए। जहां का नैसर्गिक सौंदर्य देखकर कोई भी सुधबुध खोने को मजबूर हो जाएगा। खज्जार को हिमाचल का मिनी स्वटजरलैंड भी पुकारा जाता है। दूर तक फैली हरी घांस का बुग्याल और घने देवदार के पेड़ों का नजारा प्रकृति की बेइंम्तहां खूबसूरती को बयां करने वाला है। हमने यहां जमकर फोटोग्राफी की और शाम की चाय का लुफ्त उठाया, जिसके बाद हम अपनी मंजिल डलहौजी के लिए निकल पड़े।

आगे का रास्ता हराभरा और कई प्रजातियों के वृक्षों से लदकद था। रास्ते में पानी के धारे प्रकृति के सामंजस्य और परिपूर्णता को बयां करते नजर आ रहे थे हमने एक पानी के एक धारे से अपनी बोतलों को दोबारा से भर लिया। अंधेरा होने से पहले हम डलहौजी पहुंच गए। रात का खाना खाकर हम जल्दी ही अपने बिस्तर में गहरी नींद की आगोश में चले गए। डलहौजी में प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य का आनन्द लेते हुए हमने चाय पी और फिर टहलने निकल गए। शहरी जीवन जीने के आदी हो चुके हम लोगों को देवदार के जंगल के बीच बने रास्ते में सुबह सवेरे पक्षियों और झरनों की आवाज का मधुर संगीत किसी नई दुनिया का अहसास कराने वाला लगा। बरसात के मौसम के बाद दूर-दूर तक हर ओर फैली हरियाली से नजर हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। मित्तल सर ने आगे के सफर पर निकलने की याद न दिलाई होती तो मेरे कदम तो रुकने का नाम हीं न लेते। वापस होटल पहुंचकर तैयार होने के बाद हमने डलहौजी के बाजार में स्ट्रीट ब्रेकफाॅस्ट किया जो बहुत ही लाजवाब और सस्ता भी था।

वापसी में हमारा अगला और आखिरी रात का ठिकाना कांगड़ा में था। डलहौजी से काॅंगड़ा तक की सड़क इतनी शानदार है कि सफर की दूरी का अहसास तक नहंी हुआ। हमने रात्रि विश्राम घने जंगल में एक रमणीक होम स्टे में किया। अगली सुबह नाश्ता करने के बाद हम पौंग डैम देखने निकल पड़े। कांगड़ा जिले के शिवालिक पहाड़ियों में ब्यास नदी पर स्थित यह बाँध 1975 में बनाया गया था। यह जलाशय 24,529 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। फोटोग्राफी करने के बाद हम घर वापसी के सफर पर रवाना हो गए।

हिमालयी राज्य हिमाचल की रोचक यात्रा के अनुभव जीवन में बार-बार यहां की वादियों में आने का अनुभव देने वाले रहे। इस प्रदेश की सड़कें, बिजली पानी, दूरसंचार जैसी मूलभूत जरूरतें और पर्यटकों की लगातार आमद इस प्रदेश की सरकार और ब्यूरोक्रेट्स के ईमानदार कार्यों को दर्शाने वाली है।

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