स्वरोजगार से वीरेन्द्र सकलानी को मिली राह
पंकज भार्गव
देहरादून जिले के डोईवाला ब्लाॅक के अपर जौलीग्रांट स्थित कोठारी मोहल्ले के निवासी वीरेन्द्र दत्त सकलानी वर्ष 1982 में एक सड़क हादसे के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गए थे। डाॅक्टरों ने हर संभव प्रयास किए, लेकिन वे वीरेन्द्र सकलानी को दिव्यांग होने से नहीं बचा पाए। परिवार का खर्च चलाने की सारी जिम्मेदारी उठाने वाले वीरेन्द्र सकलानी जब पूरी तरह से बिस्तर पर आ गए तो घर के आर्थिक हालात नाजुक हो गए। थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी के दम पर इलाज का खर्च और घर की जरूरतों को पूरा करना किसी चुनौती से कम न था।
वीरेन्द्र सकलानी ने बताया कि दिव्यांग संगठन से जुड़ने के बाद दिमागी रूप से उन्हें दिव्यांगता से लड़ने का हौसला मिला। शुरूआती दौर में वह सामाजिक आयोजनों में शामिल होने से भी कतराते थे लेकिन सरकार की ओर से आयोजित होने वाले शिविरों से उन्हें अन्य दिव्यांगजनों की तरह अपने अधि़कारों की जानकारी मिली। स्वयं सहायता समूह बनाने की पूरी जानकारी हासिल करने के बाद उन्होंने अपने क्षेत्र के दिव्यांगजनों के साथ मिलकर समूह बनाया। जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपनी खेती में भी जैविक तकनीक का इस्तेमाल भी शुरू किया। कुछ पैसा जमा हुआ तो वीरेन्द्र सकलानी ने खुद का छोटमोटा धंधा करने का मन बनाया।
समूह में जमा धनराशि से लोन लेकर वीरेन्द्र सकलानी ने किराये की दुकान लेकर खाने और फास्टफूड का का काम शुरू कर दिया है। इस काम में उनका एक बेटा भी हाथ बंटाता है। वीरेन्द्र सकलानी बताते हैं कि वह अपने दिव्यांग साथियों को जागरूक करने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रहे हैं। स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद उनके समूह के अन्य सदस्यों ने भी समय-समय पर जरूरतों को पूरा किया। दिव्यांगता प्रमाणपत्र हो या बस पास बनवाना वीरेन्द्र सकलानी अपने आसपास के दिव्यांगजनों के मददगार के रूप में पहचाने जाते हैं। दिव्यांगजनों को अधिकार सम्पन्न बनाने की कड़ी में वह 85 बस पास बनवाने में मार्गदर्शक बने हैं।
वीरेन्द्र सकलानी की व्यवहार कुशलता और लगन के चलते उन्हें समाज में सम्मान के नजरिए से देखा जाता है। उनका कहना है कि समय-समय पर प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर भी मिलता है। दिव्यांगजनों को स्वावलंबी और अधिकार सम्पन्न बनाने की जानकारियों को वह अन्य दिव्यांग लोगों तक भी पहुंचाते हैं।