उत्तराखंड

सरकार तक क्यों नहीं पहुंच रही सेवानिवृत्त फौजी की फरियाद !

पंकज भार्गव

चमोली जिले के विकासखण्ड कर्णप्रयाग में माणखी गांव के निवासी हैं भारतीय सेना से सेवानिवृत्त शिव प्रसाद मैंदोली। जजबा आज भी युवाओं जैसा। रिटायरमेंट के बाद वह अपनी माटी और गांव में रहकर स्वरोजगार करना करना चाहते हैं। गांव में सुविधाओं की कमी और विषम परिस्थितियों के बावजूद मैंदोली खुद का रोजगार चलाने के अपने सपने को सच करना चाहते हैं। उत्तराखंडवासी होने के चलते अपनी प्रदेश सरकार और प्रशासन से उनकी भी अपेक्षाएं है। आइये उनसे हुई बातचीत साझा करते हैं।

शिव प्रसाद मैंदोली बताते हैं कि फौज से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने गांव में रहकर कुछ कामधंधा करने का मन बनाया। अपनी 15 नाली बंजर जमीन पर थोड़ी बहुत खेती शुरू की, लेकिन परिस्थितियों के चलते उन्हें अपने हाथ वापस खींचने पड़े। उनका कहना है कि खेती के काम में कमर तोड़ मेहनत के बाद जंगली जानवरों द्वारा फसल को नुकसान पहुंचाये जाने से लागत भर का पैसा भी निकालना भारी हो गया।

अपनी जमा पूंजी के दम पर मैंदोली ने मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू करने के लिए ऊधमसिंह नगर से मुर्गी के चूजे खरीदे। पहाड़ के मौसम के आगे चूजे टिक नहीं पाए लाख जतन के बाद भी 250 से अधिक चूजों की एक साथ ही मौत हो गई।

मैंदोली ने बताया कि उन्होंने अपनी जमीन पर फूलों की खेती भी कर के देख ली, लेकिन नुकसान ही उठाना पड़ा। विभिन्न नस्ल के फूलों की अच्छी पैदावर होने के बावजूद मार्केटिंग न होने से यह भी घाटे का सौदा साबित हुआ। वह कहते हैं कि फूलों की बिक्री के लिए उन्होंने जिले के उद्यान विभाग से मागदर्शन चाहा तो उन्हें बद्रीनाथ कमेटी और गढ़वाल मंडल विकास निगम का रास्ता दिखाया गया लेकिन सिर्फ निराशा ही हाथ लगी।

मैंदोली कहते हैं कि अब उन्होंने मत्स्य पालन की योजना बनाई है। उनके गांव में प्राकृतिक श्रोतों से उपलब्ध पानी मछली पालन के लिए भरपूर है, लेकिन उन्हें इस बात का भी अंदेशा भी है कि कहीं पहले की तरह उनका यह प्रयास भी धराशाही न हो जाए।

अभी तक मैंदोली अपनी रिटायरमेंट और पेंशन की लाखों की धनराशि गंवा चुके हैं लेकिन अभी उनका हौसला उन्हें एक बार फिर से उनके सपने की खातिर नई शुरूआत करने के लिए प्रेरित करता रहता है। वह कहते हैं कि यदि खुद का रोजगार शुरू करने के लिए बने विभाग सहयोगी और पथप्रदर्शक के रूप में उनके मददगार बन जाएं तो एक दिन उनका सपना जरूर सच हो सकता है।

मैंदोली से बातचीत और उनकी कशिश के बाद यह बात कहना गलत न होगा कि स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रेरित और मार्गदर्शी बनने का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार और उसके विभाग समय रहते नींद से जाग जाएं और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें तो खुद के बूते अपनी रोजीरोटी का जरिया तलाश रहे प्रदेश के युवा सही मायने में स्वरोजगार की परिभाषा को साकार करने में सक्षम हैं।

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